स्वतःच्या

येथील सर्व कविता माझ्या स्वताच्या असून माझ्या परवानगी शिवाय कुठेही प्रकाशित करता येणार नाही

Tuesday, 25 October 2011

जाती है तो जा

बरसात सी आई थी तू
बस भिगोकर चली गई
सुरज कि गर्मी मे
बस याद बनके रह गई

धोका तो तुझे देना हि था
बस प्यार का नाटक कर गई
इस आशिक का सपना
पैरो तले कुचल कर चली गई

कितनी बडी बडी बाते कहती थी
पर वक्त पर मुकर गई
जाते जाते हसकर
साली................
दिल जला गई

ठीक है जाती है तो जा
मगर लोटके न आणा
वही घूटघूट कर
पी कर जहेर मर जाना


No comments: